सिटीन्यूज़ नॉउ
चंडीगढ़। फोर्टिस के प्रमुख न्यूरोलॉजिस्ट्स ने पार्किंसन रोग के इलाज के लिए समग्र और व्यक्ति-विशेष दृष्टिकोण अपनाने की सिफारिश की है। उन्होंने बताया कि जेनेटिक्स (वंशानुगत कारण), पोषण (डाइट) और उन्नत सर्जरी के क्षेत्र में हो रहे नए विकास इस बीमारी के इलाज को बेहतर बना रहे हैं। जेनेटिक टेस्टिंग, मिलेट्स (जैसे-बाजरा) आधारित डाइट और डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) जैसी तकनीकें अब रोगियों की देखभाल और लक्षणों के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
डॉ. सुदेश प्रभाकर, न्यूरोलॉजी डायरेक्टर; डॉ. अनुपम जिंदल, एडिशनल डायरेक्टर, न्यूरोसर्जरी; डॉ. निशित सावल, सीनियर कंसल्टेंट, न्यूरोलॉजी; और डॉ. रवनीत कौर, एसोसिएट कंसल्टेंट, मेडिकल जेनेटिक्स ने पार्किंसन रोग के कारणों, लक्षणों और इलाज के विभिन्न तरीकों पर जानकारी दी।
डॉ. सुदेश प्रभाकर ने बताया कि यह बीमारी आमतौर पर 60 साल से ऊपर के लोगों में होती है, लेकिन कभी-कभी युवा लोग भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। इसके मुख्य लक्षण हैं -हाथ-पैर कांपना, शरीर में अकडऩ, गति में कमी, लिखने और बोलने में परेशानी। इसके अलावा नींद न आना और डिप्रेशन जैसे लक्षण भी देखे जाते हैं। गंभीर कब्ज की समस्या पार्किंसन रोग के शुरुआती लक्षणों में से एक है।
डॉ. रवनीत कौर ने कहा कि कुछ विशेष जीन में बदलाव (म्यूटेशन) पार्किंसन रोग के होने का खतरा बढ़ा सकते हैं, खासकर जब परिवार में इसका इतिहास हो। बढ़ती जागरूकता और जेनेटिक टेस्टिंग की उपलब्धता के साथ, अब लोग अपनी वंशानुगत जोखिम को समझ सकते हैं कि उन्हें यह स्वास्थ्य समस्या हो सकती है।डॉ. अनुपम जिंदल ने कहा कि पार्किंसन रोग का सर्जिकल इलाज आमतौर पर तब किया जाता है जब मरीज को बीमारी का निदान हुए कम से कम दो साल हो चुके हों। दो प्रकार के इलाज उपलब्ध हैं। पहला है डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस), जिसमें दिमाग में दो पतली इलेक्ट्रोड्स डाली जाती हैं और इन्हें छाती में स्थित बैटरी से जोड़ा जाता है।