सिटीन्यूज़ नॉउ
चंडीगढ़, 16 अप्रैल 2025: बंगीय सांस्कृतिक सम्मिलनी (बीएसएस), चंडीगढ़ ने बंगाली नववर्ष ‘पोइला बोइशाख’ को गर्व, उत्साह और आत्मीयता के साथ बंगा भवन परिसर में पारंपरिक बंगाली विरासत को जीवित रखते हुए धूमधाम से मनाया।सांस्कृतिक एकता हमारे जैसे विविधता भरे देश में एक महान एकीकृत शक्ति रही है, और बीएसएस पिछले पचास वर्षों से चंडीगढ़ में इस दिशा में शानदार कार्य कर रहा है, ऐसा कहना है कर्नल दीपक डे, एसएम (से.नि.), महासचिव, बीएसएस का।
सदस्यों ने खुले मंच पर ‘जात्रा’ नामक बंगाली पारंपरिक संगीत नाटक की प्रस्तुति दी, जो कई सदियों पुराने बंगाली रंगमंच की शैली का प्रतीक रही। ‘बंगाली’ नामक इस जात्रा में ऐतिहासिक महत्व, सामाजिक समरसता और धार्मिक सहिष्णुता के संदेश को समाहित किया गया था, जो दर्शकों को 16वीं सदी के उस भारत में ले गया जब दिल्ली के शासकों और बंगाल साम्राज्य के बीच युद्ध हुआ करते थे।
सांस्कृतिक प्रमुख भवानी पाल और संयोजक अंजना मेनन ने सम्मेलन के 30 सदस्यों को इस प्रस्तुति के लिए एकत्रित किया जिनमें शामिल थे: डालिम चटर्जी (निर्देशक), जयमाल्य सेनगुप्ता, बिश्वजीत सेन, सुभाषिष निओगी, संदीप चटर्जी, सुनील चटर्जी, शंकर संत्रा, दीपक ठाकुर, अनुभव सेन, अंगन रॉय, अम्बिका कुलावी, तमिस्रा बनर्जी, समीता दत्ता, बशुधा बंधोपाध्याय, काजोल चटर्जी, सुप्रिया सेनगुप्ता, प्रोजुषा, वंशिका, उमिका, आराध्या, आशीष डे, दीपांकर दास, प्रबल मित्रा।इस भव्य आयोजन में दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ी और बंगाल की समृद्ध विरासत का शानदार प्रदर्शन देखने को मिला। कार्यक्रम के पश्चात एक विशिष्ट बंगाली पारंपरिक रात्रि भोज परोसा गया जिसमें माछेर झोल (मछली की करी) और चावल परोसा गया — जो बंगाल का पसंदीदा व्यंजन है।
बीएसएस के अध्यक्ष डॉ. अमित भट्टाचार्य ने आत्मविश्वास से कहा कि इतने वर्षों में बीएसएस की निरंतर प्रगति को देखना गर्व की बात है, जिसकी नींव हमारे वरिष्ठों ने बहुत मज़बूती से रखी थी। बेहतरीन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ बीएसएस एक अनुशासित और क़ानून का पालन करने वाला संगठन रहा है, जो शहर में विभिन्न सामाजिक उत्तरदायित्वों में भी सदैव अग्रणी रहता है।