चंडीगढ़ । लिवासा मोहाली ने 60-दिवसीय जागरूकता अभियान के माध्यम से टीबी से लडऩे की मुहिम को तेज कर दिया है। विशेषज्ञों की टीम अस्पताल में रियायती कीमतों पर टीबी रोगियों की जाँच करेगी और स्क्रीनिंग शिविरों और स्वास्थ्य वार्ता के माध्यम से समुदायों में जागरूकता पैदा करेगी। जागरूकता अभियान आगामी 24 मार्च से 31 मई तक जारी रहेगा।
ज्ञात रहे कि टीबी एक प्राचीन बीमारी है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया के कारण होती है। कुपोषण और खराब स्वच्छता के अलावा खराब सामाजिक-आर्थिक स्थिति और नागरिक परिस्थितियाँ अव्यक्त टीबी संक्रमण के लिए घातक होते हैं। बीसीजी वैक्सीन का इस्तेमाल आमतौर पर बचपन में टीबी के गंभीर रूपों से बचाने के लिए किया जाता है। सिटीन्यूज़ नॉउ से जानकारी सांझा करते हुए लिवासा हॉस्पिटल्स के निदेशक और सीईओ डॉ. पवन कुमार ने बताया कि तपेदिक प्रबंधन के लिए व्यापक स्वास्थ्य सेवा रणनीतियों में निवेश करके, प्रभावी रूप से टीबी की घटनाओं को कम किया जा सकता है।
उधर लिवासा अस्पताल में पल्मोनरी मेडिसिन विभाग की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. सोनल ने बताया कि वर्ष 2000 से टीबी के लिए नए निदान हेतू बेडाक्विलाइन, डेलामैनिड और टेक्सोबैक्टिन दवाओं से टीबी घटनाओं में 2015-2024 मे 16 प्रतिशत कमी आई है। राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2017-2025) में टीबी के मामलों में तेजी से कमी लाने के लिए साहसिक रणनीति के बावजूद देश में टीबी के मामलों और दवा प्रतिरोध में वृद्धि के रुझान परेशान करने वाले हैं।
उन्होने कहा कि टीबी का निदान छाती के एक्स-रे, थूक परीक्षण और अन्य परीक्षाओं के माध्यम से किया जा सकता है। उपचार के लिए, छह महीने से डेढ़ साल की अवधि के लिए जीवाणुरोधी दवाएं दी जाती हैं। लिवासा मोहाली में पल्मोनरी मेडिसिन के कंसल्टेंट डॉ. कृतार्थ ने कहा कि देश भर में जागरूकता की कमी, संसाधन, खराब बुनियादी ढाँचा, दवा प्रतिरोध के बढ़ते मामले, खराब अधिसूचना और कुल मिलाकर लापरवाही जैसे कारक बड़ी चुनौतियाँ हैं।
लिवासा अस्पताल मोहाली में पल्मोनरी मेडिसिन के वरिष्ठ निदेशक डॉ. सुरेश कुमार गोयल ने बताया कि तपेदिक एक संक्रामक रोग है जो मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है और यह प्रमुख जानलेवा बीमारियों में से एक है, जिससे 2024 में 1.3 मिलियन लोगों की मृत्यु हो सकती है। यह बीमारी हवा के माध्यम से फैलती है जब कोई संक्रमित व्यक्ति खांसता, छींकता या थूकता है। अगर समय पर इसकी सूचना और निदान हो जाए तो टीबी को रोका जा सकता है।