सिटीन्यूज़ नॉउ
चंडीगढ़, 25 अप्रैल 2025: एक विचारोत्तेजक नई पुस्तक भारत के कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (कैग) की पारदर्शिता, सुशासन और लोकतांत्रिक जवाबदेही में महत्वपूर्ण भूमिका का गहराई से और संतुलित विश्लेषण प्रस्तुत करती है।अनुभवी सिविल सर्वेंट और ऑडिट विशेषज्ञ पी. सेश कुमार द्वारा लिखी गई यह किताब कैग के भारत और विदेशों में असर को सरल और विस्तार से समझाती है। इसमें बताया गया है कि कैग ने कैसे पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत किया, और सरकार के कामकाज में सुधार लाने में मदद की।
किताब में कोयला ब्लॉक आवंटन और 2जी स्पेक्ट्रम जैसे मामलों की ऑडिट का ज़िक्र है, जिनसे बड़े बदलाव हुए और कैग के काम पर लोगों का ध्यान गया। यह किताब वाइट फाल्कन पब्लिशिंग द्वारा प्रकाशित की गई है।इस किताब की खास बात यह है कि यह कैग की गम्भीरताओ को भी ईमानदारी से सामने लाती है। इसमें उन कमियों की चर्चा की गई है, जहाँ सुधार की ज़रूरत है—जैसे आत्मविश्लेषण की कमी, प्रभावहीन समकक्ष समीक्षाएं और वाउचर लेवल कम्प्यूटराइजेशन व “वन आईएएडी वन ऑडिट” जैसी पहलों की खामियाँ।
लेखक ने कैग को एक बहु-सदस्यीय संस्था बनाया जाए, जिसमें सशक्त आंतरिक नियंत्रण, पारदर्शी निगरानी तंत्र और जवाबदेही तथा विकासात्मक आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करने का सुझाव दिया है। लेखक ने कहा, “कैग भारतीय लोकतंत्र की एक आधारशिला है, लेकिन प्रत्येक संस्था की तरह इसका भी समय के साथ विकास होना आवश्यक है। यह पुस्तक न केवल इसकी भूमिका को स्पष्ट करती है, बल्कि जन संवाद को प्रोत्साहित करती है और भविष्य के लिए रचनात्मक सुझाव भी प्रस्तुत करती है।लेखक के बारे मेंपी. सेश कुमार वर्ष 1982 में भारतीय लेखा एवं लेखा परीक्षा सेवा (IA&AS) में शामिल हुए। उन्हें ऑडिट, लोक प्रशासन और नीतिनिर्माण में तीन दशकों से अधिक का अनुभव है। उन्होंने परमाणु ऊर्जा विभाग और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय में कार्य किया और प्रत्यक्ष कर, ऊर्जा, वित्त और सार्वजनिक उपक्रम जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के ऑडिट में प्रमुख भूमिका निभाई।
सेवा निवृत्ति के बाद, उन्होंने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित निगरानी समिति के सचिव जैसे अहम दायित्व भी निभाए। वर्तमान में वे अंशकालिक रूप से कॉरपोरेट गवर्नेंस और सार्वजनिक नीति के मुद्दों पर सलाह देते हैं और साथ ही समाजसेवी संगठनों को भी सहयोग प्रदान करते हैं।यह पुस्तक नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं, सिविल सर्वेंट्स और भारत में सार्वजनिक जवाबदेही तथा सुशासन के भविष्य में रुचि रखने वाले सभी लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी एवं पठनीय है।