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चण्डीगढ़ / श्रीहरि सिमरन सेवा समिति, चण्डीगढ़ द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ( चतुर्थ ) में भागवत किंकर आचार्य विवेक जोशी जी ने आज की कथा में कहा कि सभी लोगों को अपने ईष्ट की भक्ति करने का तरीका अलग-अलग होता है। कुछ मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करते हैं तो कुछ घर पर रहकर ही भगवान का ध्यान करके उन्हें प्रसन्न करते हैं। सभी अपने तरीके से ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।
संसार में दो तरह के लोग पाए जाते हैं जिनमें से कुछ नास्तिक होते हैं तो कुछ आस्तिक। जो भगवान के प्रति श्रद्धा भाव रखता है उसे आस्तिक कहा जाता है, वहीं जो ईश्वर में आस्था नहीं रखते वह नास्तिक कहलाते हैं। भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने चार प्रकार के भक्तों का वर्णन किया है। जो इस प्रकार हैं – आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी।
सर्वश्रेष्ठ भक्त ज्ञानी भक्त होते हैं जो बिना किसी कामना के भगवान की भक्ति में लीन रहता है। ज्ञानी भक्त भगवान को छोड़कर और कुछ नहीं चाहता है। इसलिए भगवान ने ज्ञानी को अपनी आत्मा कहा है। जिस व्यक्ति के मन में हर समय केवल परमात्मा ही बसें हों और उनसे बढ़कर दुनिया में उसके लिए अन्य कोई न हो, वही भक्त है। इसलिए ज्ञानी भक्त को भगवान श्री कृष्ण ने सबसे श्रेष्ठ दर्जा दिया है।
समिति की मुख्य संरक्षक पूनम कोठारी दास ने बताया कि श्रावण मास में हो रही ज्ञान गंगा में आज समाजसेवी राजनेता अरुण सूद ने कथा व्यास के दर्शन किए व आशीर्वाद लिया। कथा मे समिति के पदाधिकारी एवं कई और शक्षित हुए शामिल.