Monday, December 1, 2025
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भारत सरकार हरियाणा के गौरवशाली संस्कृति एवं समग्र विकास हेतु अलग राजधानी होना अति आवश्यक : एससी चौधरी, पूर्व मुख्य सचिव, हरियाणा

हरियाणवी लोकगायक हरियाणा बनाओ अभियान के तहत प्रदेश की अलग राजधानी व उच्च न्यायालय के लिए आवाज़ बुलंद की

सिटीन्यूज़ नॉउ

चण्डीगढ़। हरियाणा को पंजाब से अलग हुए 58 साल हो गए हैं, लेकिन दुर्भाग्य से इस क्षेत्र को अभी तक पूर्ण स्वायत्त राज्य का दर्जा नहीं मिल सका है क्योंकि इसके पास अपनी अलग राजधानी और अलग उच्च न्यायालय नहीं है। इसलिए इस क्षेत्र के गौरवशाली इतिहास एवं समृद्ध प्राचीन संस्कृति के आधार पर विशेष पहचान बनाने का सुनहरा अवसर व्यर्थ जा रहा है।

उन्होंने कहा कि भारत में हरियाणा की पवित्र भूमि अपनी प्राचीन सभ्यता, समृद्ध संस्कृति, गौरवशाली इतिहास, आध्यात्मिक समृद्धि और सामाजिक सद्भाव के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखती है। लेकिन आज का हरियाणा अपनी राजधानी से वंचित है। आज हरियाणा के लोगों के पास अपनी विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने तथा आधुनिक आर्थिक प्रगति और उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए कोई केंद्रीय स्थान नहीं है।

सात जिलों से 22 जिले बनाने का अप्रत्यक्ष औचित्य लोगों को प्रशासनिक और न्यायिक सेवाएं प्रदान करना है। लेकिन राज्य के एक कोने में स्थित राजधानी में दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश लोगों को प्रशासनिक कार्यालयों और उच्च न्यायालय तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है और हजारों रुपये का टोल चुकाना पड़ता है।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में लाखों मामले लंबित होने के कारण हरियाणा के लोगों को न्याय के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है और यह महंगा भी पड़ता है। हरियाणा बनाओ अभियान के संयोजक रणधीर सिंह बधरान, जो पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व चेयरमैन, बार काउंसिल पंजाब एवं हरियाणा हैं ।

अधिवक्ता अधिनियम के तहत अलग बार काउंसिल के निर्माण के लिए हरियाणा में अलग उच्च न्यायालय का निर्माण जरूरी है। रिकॉर्ड के अनुसार हरियाणा के 14,25,047 से अधिक मामले हरियाणा के जिलों और अधीनस्थ न्यायालयों के समक्ष लंबित हैं और 450000 से अधिक मामले उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं और लाखों मामले अन्य आयोगों, न्यायाधिकरणों और अन्य प्राधिकरणों के समक्ष लंबित हैं।

अनुमान है कि हरियाणा के 45 लाख से अधिक लोग मुकदमेबाजी में शामिल हैं और अधिकांश वादकारी मामलों के निपटारे में देरी के कारण प्रभावित होते हैं। इस मुद्दे के समाधान के लिए हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों को अलग-अलग उच्च न्यायालय की आवश्यकता है।

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